Solid Waste Disposal
ठोस अपशिष्ट निपटान
Day by Day Increasing Problem of Solid Waste in The World
विश्व में दिन-प्रतिदिन ठोस अपशिष्ट पदार्थों की बढ़ती समस्या
Introduction
परिचय

भारत में पहली बार 2012 में ठोस अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन के विरुद्ध लाखों जनसमूह एकत्रित हुए। जम्मू-कश्मीर में जगह जगह एकत्रित कचरे नालियों के अवरोध, नदियों के प्रदूषण ने जम्मू-कश्मीर के निवासियों को सरकार के खिलाफ कर दिया तथा पर्यावरण की स्वच्छता के लिए उत्तरी भारत में एक युद्ध सा छिड़ गया। पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति सजग जनता का मानना है कि वे पदार्थ जो अनुपयोगी व अनावश्यक है, उन्हें नदियों, नालों, सड़कों पर फेंकने से नालियां अवरुद्ध होती हैं, जिससे पानी सड़कों पर फैलता है व अनेक रोगों को जन्म देता है। नदियों का पानी पीने के पानी का मुख्य स्रोत है। इसे दूषित करने से अनेक जल जनित रोग हो जाते हैं। सड़कों का कचरा, मक्खियों, मच्छरों, कीटाणुओं का घर होता है, जिनके कारण मानव स्वास्थ्य को हानि पहुंचती हैं तथा हानिकारक कचरे प्लास्टिक, कागज कांच आदि को खाने से अनेक पशु भी रोग ग्रस्त होकर मर जाते हैं। अतः सरकार को ऐसे कचरा जो अघुलनशील है, चाहे वे गैसीय अवस्था के पदार्थ हो, चाहे तरल अवस्था के, चाहे ठोस अवस्था के निपटारे के उचित प्रबंध करने चाहिए।
केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के छोटे से गांव विलापविलशाला एक ग्राम पंचायत अध्यक्ष ने ठोस पदार्थ के निपटारे के उचित प्रबंध न होने के खिलाफ भूख हड़ताल कर दी क्योंकि केरल सरकार तिरुवंनतपुरम के 80 प्रतिशत कचरे को विलापविलशाला गांव में पहुंचा रही थी, जिसके कारण इस गांव में हर मां 450 से 5,000 मामले श्वसन रोगियों के होते थे। साथ ही नियमित तैराकी करने वाले लोग भी संक्रमित होकर बीमार हो गए तथा घरेलू स्तर पर स्वच्छ जल उपलब्ध ना होने के कारण यह गांव हर माह दूषित गांव की श्रेणी में आने लगा।
आज भी तिरुवंनतपुरम के निवासी घरेलू कचरे को प्लास्टिक बैग में भरकर पानी, खेत या घासों में डाल रहे हैं। पशुओं के अपशिष्ट पदार्थों व पौधों के अपशिष्ट पदार्थों के प्रबंधन की उचित व्यवस्था ना होने पर इन पदार्थों को खुले में जलाया जा रहा है, जिसके कारण अनेक लोग श्वसन रोग, अस्थमा, बुखार आदि के शिकार हो रहे हैं।
कर्नाटक की राजधानी बैंगलोर की सड़कें ठोस कचरे से भरी पड़ी हैं। यहाँ नगरपालिका कर्मचारी महीने भर में एक या दो सड़कों की सफाई करते हैं। ठोस कचरे के निपटारे के उचित प्रबंधन न होने के कारण यहाँ का अधिकतर कचरा जमीनों में दबा दिया जाता है , जिससे जमीन के बंजर होने व अस्वास्थ्यकर फसलें उगने की संभावना रहती है।
ठोस कचरे के निपटारे के कुप्रबंधन के फलस्वरूप पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को डेंगू का प्रकोप झेलना पड़ा। कोलकाता में डेंगू महामारी के रूप में फैला , जिसमें लाखों लोगों की मृत्यु हुई। इसी प्रकार मुम्बई में बढ़ती गंदगी के परिणामस्वरूप 60 प्रतिशत रोगी बढ़े हैं तथा कश्मीर में कचरे की अधिकता ने आवारा कुत्तों के अनुपात को अधिक बढ़ा दिया है। इसलिए कश्मीर में पिछले 5 सालों में करीब 20 लोगों की मृत्यु कुत्तों के काटने से हुई है और करीबन 80,000 मामले रेबीज के दर्ज हुए हैं।
उपरोक्त आंकड़े भारत के ठोस कचरे के निपटारे के प्रबंधन की गंभीर समस्या की ओर इशारा करते हैं। किंतु यह समस्याएं जितनी गंभीर हैं उतने ही इस समस्या के निदान के प्रयास भी गंभीर व अर्थ पूर्ण है।

Construction and Maintenance of Sanitary Sewerage System सेनेटरी सीवरेज सिस्टम का निर्माण व रखरखाव read more
हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता के लिए विशेष अभियान "स्वच्छ भारत अभियान" अपनाया है। इस अभियान का उद्देश्य गलियों, सड़कों, नालियों तथा नदियों को साफ सुथरा करना है। यह अभियान 2 अक्टूबर 2014 को आरंभ किया गया। अभियान का उद्देश्य शहरी क्षेत्र के 1.04 करोड़ परिवारों को लक्षित करते हुए 2.5 लाख सामुदायिक शौचालय, 2.6 लाख सार्वजनिक शौचालय और प्रत्येक क्षेत्र में एक ठोस अपशिष्ट प्रबंधन शाखा की सुविधा प्रदान करना है। यह कार्यक्रम सरकार के 5 साल की अवधि के दौरान 4401 शहरों में लागू किया जाएगा। कार्यक्रम में खर्च होने वाले 62 हजार 9 करोड रुपए में से 14623 करोड रुपए केंद्र सरकार द्वारा दिए जाएंगे। केंद्र सरकार द्वारा प्राप्त होने वाले 14623 करोड़ रुपयों में से 7366 करोड रुपए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर व बाकी घरेलू शौचालय व सामुदायिक शौचालय पर खर्च किए जाएंगे।
अभियान का उद्देश्य 5 वर्षों में भारत को कचरा मुक्त देश बनाने का है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत ग्रामीण भारत में कचरे का इस्तेमाल जैव उर्वरक व ऊर्जा के विभिन्न रूपों में परिवर्तित करने के लिए किया जाएगा।
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए ग्रामीण आबादी, शहरी आबादी, स्कूल शिक्षकों तथा छात्रों के बड़े वर्गों के अलावा प्रत्येक स्तर पर इस प्रयास में देशभर की ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद को भी इससे जोड़ा गया है।
2 अक्टूबर 2014 को भारत के प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली में स्वच्छ भारत अभियान की शपथ लेते हुए कहा - कि महात्मा गांधी ने जिस भारत का सपना देखा था उसमें सिर्फ राजनैतिक आजादी ही नहीं थी, बल्कि एक स्वच्छ व विकसित देश की कल्पना भी थी। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम गांधी जी के सपने को पूरा करने के लिए सजग रहें, गंदगी ना फैलाएं व देश के स्वच्छता के लिए समय दें। मोदी जी ने कहा कि "मैं शपथ लेता हूं कि मैं अपने देश की स्वच्छता के लिए प्रतिवर्ष 100 घंटे श्रमदान करूंगा, मैं ना गंदगी करूंगा, ना किसी को करने दूंगा। सबसे पहले मैं स्वयं से, मेरे परिवार से, मेरे मोहल्ले से, मेरे गांव से व मेरे कार्य स्थल से शुरुआत करूंगा।"
"जिन देशों में गंदगी नहीं है, उसका कारण है कि वहां के नागरिक स्वच्छता के प्रति सजग हैं। अतः मैं भी अपने देश के हर नागरिक को स्वच्छता के महत्व के प्रति जागरूक करूंगा व कम से कम 100 नागरिकों को अपने स्वच्छ भारत अभियान की शपथ से जोड़ूंगा तथा वे 100 नागरिक अन्य 100 नागरिकों को जोड़ेंगे और इस तरह स्वच्छ भारत का मिशन सफल होगा।"
भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के प्रयास सराहनीय हैं। किंतु भारत की स्थिति अब भी कचरा प्रबंधन के मामले में ज्यों की त्यों है। आज भी जगह-जगह गंदगी के ढेर, अवरूद्ध नालियों का सड़कों पर बहता पानी, यहां - वहां बिखरे कपड़े व प्लास्टिक के टुकड़े, सब्जियों का कचरा, आवारा - पशुओं के अपशिष्ट पदार्थ आदि भारत की अस्वच्छता की साफ तस्वीर पेश करते हैं। भारत तब तक स्वच्छ नहीं रह सकता, जब तक भारत के नागरिक स्वयं इस कार्य को महत्व नहीं देंगे।

भारत की विशाल जनसंख्या स्वयं भारत में कचरा फैलाने के लिए जिम्मेदार है। फिर इसे साफ करने की जिम्मेदारी से क्यों कतराती है? नगर पालिका, नगर निगम या अन्य सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं के भरोसे बैठने के बजाए यदि भारत का हर नागरिक कचरा ना फैलाने व कचरे को सही जगह फेंकने की जिम्मेदारी समझे, तो भारत भी सही मायने में स्वच्छ व निर्मल देश बन सकता है।