Soil Sanitation
मिट्टी की स्वच्छ्ता
मिट्टी के प्रकार
Classifications of Soil
- कटिबंधीय मिट्टी (Zonal Soil)
- कटिबंधांतरिक मिट्टी (Intrazonal Soil)
- अपार्शिक मिट्टी (Azonal Soil)
विश्व स्तर पर मिट्टी को तीन वृहत भागों में विभक्त किया जाता है :-

- कटिबंधीय मिट्टी (Zonal Soil):-
- पेडाल्फर (Pedalfer):- इस मिटटी में लोहा व एल्युमिनियम की मात्रा अधिक होती है तथा वन प्रदेशों व लम्बे घास वाले प्रदेशों में पाई जाती है।
- पेडोकॉल (Pedocal):- पेडोकॉल मिट्टी में कैल्शियम की प्रधानता होती है। पेडोकॉल में तीन तरह की मिटटी सम्मिलित होती है :- चरनोजम, भूरी स्टेपी तथा मरुस्थली मिट्टी।
- कटिबंधांतरिक मिट्टी (Intrazonal Soil):-
- अपार्शिक मिट्टी (Azonal Soil):-
कटिबंधीय मिट्टी जलवायु तथा वनस्पति प्रदेशों के अनुसार पाई जाती है, जिसे दो मुख्य भागों में विभक्त किया जाता है :-
पेडाल्फर व पेडोकॉल के अतिरिक्त कटिबंधीय मिट्टी में टुंड्रा मिट्टी भी सम्मिलित होती है जो अत्यधिक निम्न तापमान के कारण कम विकसित हो पाती है।
कटिबंधीय मिट्टी के बीच-बीच बिखरे रूपों में पाई जाने वाली मिट्टी को कटिबंधांतरिक मिट्टी कहते हैं। इसके ऊपर मुख्यत: मूल चट्टानों, अपक्षय, वाष्पीकरण, जल रिसाव आदि का प्रभाव होता है। चुना पत्थर से निर्मित रेंडजीना मिट्टी, लावा से उत्पन्न काली मिट्ठी इसके उदाहरण हैं।
मिट्टी का एक भाग अपार्शिक मिट्टियों से बना होता है, जिन पर मिट्टी निर्माण की किसी प्रक्रिया (हवा, पानी या अन्य स्रोतों द्वारा मिट्टी का लाना) का प्रभाव नहीं होता है तथा इस प्रकार की मिटटी में भिविन्न संस्तरों का विकास नहीं हो पता है। जलोढ़, हिमोढ़, लोयसया वायूढ़ इसी प्रकार की मिट्टियां हैं जो स्थानांतरित होते रहने के कारण पूर्व विकसित नहीं हो पाता हैं।
What is Soil ? How is Formation of Soil ? and How is The Structure of Soil?
मिट्टी क्या है ? मिट्टी का निर्माण कैसे होता है ? तथा मिट्टी की संरचना कैसे होती है ? read more
भारतीय मिट्टी का वर्गीकरण
Classification of Indian Soil
मिट्टी, भारत की मुख्य प्राकृतिक व आर्थिक संसाधन है। भारत की मिट्टी की संरचना व संयोजक तत्व भिन्न हैं। भारत की विभिन्न जलवायु, क्षेत्रीय भिन्नता, बनावट व भौगोलिक स्थिति की असमानता के कारण भारत की मिट्टी में असमानताएं हैं। भारत के उत्तरी मैदानी इलाकों की मिट्टी अधिक उपजाऊ है, वहीं भारत के पश्चिमी इलाके जैसे :- राजस्थान की भूमि रेतीली है।
- कछारी मिट्टी (Alluvial Soil):-
- काली मिट्टी (Black Soil):-
- लाल मिट्टी (Red Soil):-
- लैटेराइट मिट्टी (Laterite Soil):-
- पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil):-
- रेगिस्तानी या रेतीली मिट्टी (Desert Soil):-
भारत की मिट्टी को समझने के लिए इसे मुख्यत: 6 भागों में विभाजित किया जा सकता है:-
कछारी मिट्टी भारत के उत्तरी मैदानी भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी नर्मदा,ताप्ती व उत्तरी गुजरात की निम्न घाटियों में भी पाई जाती है। कछारी मिट्टी का निर्माण नदियों द्वारा अपने साथ लाए गए उपजाऊ कणों के जमा होने पर होता है। इस मिट्टी का हर वर्ष पुननिर्माण होता है।
काली मिट्टी भारत के महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात, आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु आदि क्षेत्रों में पाई जाती है। काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी चट्टानों व लावा के बहने से होता है। इस मिट्टी में लाइम, आयरन, मैगनीशियम व पोटाश तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। किन्तु नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व जैविक पदार्थों की इस मिट्टी में कमी होती है।
भारत की लाल मिट्टी का निर्माण ढक्कन के पठार (Deccan Plateau) की रूपांतरित चट्टानों (Metamorphic Rock) के अपक्षय अर्थात टूटने के कारण हुआ है। आयरन की अधिकता के कारण मिटटी का रंग लाल है। जहां आयरन क, मात्रा में है, वहां मिट्टी का रंग पीला या भूरा है। भारत के तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र व उड़ीसा के कुछ भागों में लाल मिट्टी पाई जाती है।
लैटेराइट मिट्टियों का निर्माण पहाड़ियों के शिखरों के पिघलने के कारण होता है। यह मिट्टी भारत के केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओडिसा व असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
पर्वतीय या पठारी मिट्टी का निर्माण जंगलों के विकास के परिणामस्वरूप बचे जैविक पदार्थों के जमा होने के कारण होता है। यह मिट्टी हिमालय क्षेत्र के कुछ भागों में पाई जाती है। इस मिट्टी में उगने वाली प्रमुख फसल चाय है।
राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में मिट्टी विकसित अवस्था में नहीं पाई जाती। वर्षा की कमी के कारण यहां की मिट्टी में कठोरता व नमक की अधिकता है।
मिट्टी का निर्माण चट्टानों की टूट-फूट, जानवरों व वनस्पति पदार्थों के आपस में घुल-मिल जाने से होता है। मिट्टी का निर्माण कई हजार सालों में हुआ है। धरती पर मिट्टी की तह असमान है अर्थात कहीं पतली व कहीं मोटी है। धरती की ऊपरी तह ढ़ीली होती हैं व इसमें स्पंज की तरह छिद्र होते हैं, जिनमें हवा गुजरती रहती है। धरती के स्पंजी होने के कारण जब बारिश होती, तब बारिश का पानी मिट्टी के छिद्रों द्वारा जमीन में समै जाता है व धरती के विभिन्न स्तरों या तहों में जमा हो जाता ह, जिसे धरती के नीचे का पानी कहते हैं। बरसात के समय जब धरती में अधिक पानी जम जाता है तब धरती में जमी हवा बाहर निकलने लगती है व वायुमंडल में गर्मी बढ़ा देती है व अनेक रोगों को जन्म देती है।