महामारी अधिनियम,1897
Epidemic Act, 1897
खतरनाक महामारियों के प्रसार की बेहतर रोकथाम करने के लिए आवश्यक अधिनियम
भारतीय महामारी रोग अधिनियम,1897
Indian Epidemic Disease Act,1897
आज विश्व संक्रामक रोगों की चपेट में है। भारत में करीब 30 प्रतिशत आबादी संक्रामक रोगों से ग्रसित है। प्रत्येक वर्ष हजारों महामारी फैलती है और उनमें से अधिकतर महारोगों के कारण फैलती है जिनका उपचार ढूंढने में हम असफल रहते हैं। जन स्वास्थ्य को मानव व्यवहार व अनेक जैविक तत्व प्रभावित करते हैं। इसलिए हमे ऐसे नियम, कानून या विधान की आवश्यकता है जो जन स्वास्थ्य को हानि पहुंचने वाले तत्वों पर नजर रख सके तथा तत्परता से उसके विरुद्ध कदम उठा सके। इसके लिए एक नियम या संगठन पर्याप्त नहीं है, बल्कि समय परिस्थिति व जरूरत के हिसाब से अलग-अलग नियमों की आवश्यकता है। भारत ने भी अपने जन स्वास्थ्य के लिए अनेक नियम बनाए हैं। इनमे से एक नियम है "भारतीय महामारी रोग अधिनियम,1897 (Indian Epidemic Disease Act,1897).

भारतीय महामारी रोग अधिनियम,1897
"भारतीय महामारी रोग अधिनियम "4 फरवरी 1897 को लागू हुआ। यह कानून मुंबई में प्लेग महामारी फैलने के परिणामस्वरूप आया। इस कानून ने मुंबई में प्लेग रोग को सीमित करने के लिए कड़े मापकों की शृंखला बनाई।
- COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए भारत सरकार ने महामारी रोग अधिनियम,1897 (Epidemic Disease Act,1897) में संशोधन किया और स्वास्थकर्मियों के साथ अहिंसा के अपराध को गैर जमानती अपराध घोषित किया था, जिससे लगभग 123 वर्ष पुराना यह अधिनियम एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया।
अधिक चर्चा में क्यों आया ?
- जे. वुडबर्न (J Woodburn), भारतीय गवर्नर जनरल की परिषद (Council of the Governor General of India) के सदस्य ने सर्वप्रथम 28 जनवरी, 1897 को ‘ब्लैक डेथ’ के नाम से प्रसिद्ध ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) के प्रकोप के दौरान महामारी रोग विधेयक को प्रस्तुत किया था।
- विश्लेषकों के अनुसार, जनसंख्या के निरंतर प्रवाह के कारण प्लेग महामारी तेज़ी से फैल रही थी और अनुमान के अनुसार, महामारी फैलने के दौरान प्रति सप्ताह लगभग 1900 लोगों की मौत हो रही थी।
- जे. वुडबर्न ने कहा था कि ‘ब्यूबोनिक प्लेग जो कि बॉम्बे में काफी अधिक फैल चुका है और धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्सों में फैल रहा है, इसलिये आवश्यक है कि सरकार जल्द-से-जल्द इस बीमारी से लड़ने के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण कदम उठाए, ताकि यह बीमारी देश के अन्य हिस्सों में न पहुँचे।
- विधेयक में कहा गया था कि नगरपालिका निकायों, छावनियों और अन्य स्थानीय सरकारों के पास इस प्रकार की स्थितियों से निपटने के लिये शक्तियाँ तो थीं, किंतु वे सभी शक्तियाँ ‘अपर्याप्त’ थीं।
- भारत की उस समय की स्थिति से विश्व के कई अन्य देश भी चिंतित थे, रूस का अनुमान था कि इस बीमारी के कारण आगामी समय में संपूर्ण उपमहाद्वीप संक्रमित हो सकता है।
- इस विधेयक में भारतीय प्रांतों और स्थानीय सरकारों को विशेष शक्तियाँ प्रदान की गईं, जिसमें ट्रेनों और समुद्री मार्गों के यात्रियों की जाँच करना भी शामिल था।
- विधेयक में कहा गया था कि इसमें कहा गया है कि मौजूदा कानून नगर निगम अधिकारियों के लिये ‘भीड़भाड़ वाले घरों, उपेक्षित शौचालयों तथा झोपड़ियों और अस्वच्छ गौशालाओं तथा अस्तबलों’ से संबंधित विभिन्न मामलों से निपटने के लिये पर्याप्त नहीं हैं।
महामारी अधिनियम क्यों आवश्यक था ?
Why was the Epidemic Act necessary?
- इस अधिनियम को जेम्स वेस्टलैंड (James Westland) की अध्यक्षता वाली एक समिति को भेजा गया, जिसने अगले ही सप्ताह 4 फरवरी, 1897 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और इसी दिन संक्षिप्त चर्चा के पश्चात् विधेयक पारित कर दिया गया।
- यह अधिनियम ब्यूबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) के बढ़ते संक्रमण की चिंताओं के संदर्भ में पारित किया गया था, क्योंकि बॉम्बे से काफी अधिक मात्रा में संक्रमित लोग देश के अन्य क्षेत्रों में जा रहे थे, जिससे प्लेग काफी तेज़ी से फैल रहा था। (तत्कालीन ब्रिटिश सरकार मुख्य रूप से भारत की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता के लिये काफी चिंतित थी।)
- अधिनियम पर चर्चा करने वाले सदस्यों में रहीमतुला मुहम्मद सयानी (Rahim Tula Muhammad Sayani) और दरभंगा के महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह (Lakshmishwar Singh) ने कहा था कि इस अधिमियम को काफी ‘हड़बड़ी’ में पारित किया जा रहा है।
यह अधिनियम कैसे पारित हुआ ?
How was this act passed?
- धारा (1) :-
- धारा (2) :-
- धारा (3) :-
- धारा (4) :-
भारतीय महामारी अधिनियम,1897 को चार धाराओं (भागों) में बांटा गया हैं :-
यह अधिनियम या कानून "भारतीय महामारी रोग अधिनियम,1897" कहलाएगा तथा अब इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर हैं।
अगर किसी राज्य सरकार को अपने राज्य या राज्य से संबंधित किसी हिस्से में महामारी फैलने का डर है तथा राज्य सरकार को यह लगता है कि 1897 के कानून द्वारा उपयुक्त साधन या उपाय पर्याप्त नहीं हैं, तो राज्य सरकार अपने स्तर पर महामारी की रोकथाम के उपाय कर सकती है। वह अतिरिक्त स्वास्थ्यकर्मियों की अस्थाई नियुक्ति करसकती है, सुरक्षात्मक उपाय अपना सकती है या अपनी जनता को संबंधित रोग के लक्षण व उपचार संबंधी आवश्यक जानकारी जनता तक अनेक साधनों के माध्यम से पहुंचा सकती हैं।
धारा (2क) :-
इस अधिनियम की धारा (2क) केन्द्र सरकार की कार्य की शक्तियों को बताती है है। जब केन्द्र सरकार को यह लगता हो की किसी राज्य में फैली महामारी को रोकने में राज्य सरकार असमर्थ है या रोग का प्रसार विदेशों से है, तब केंद्र सरकार उक्त राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप कर अपने स्तर पर महामारी की रोकथाम के प्रयास करती है। वह राज्य सरकार द्वारा नियुक्त स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या बढ़ा सकती है। विदेशों से आने वाले लोगों का निरिक्षण कर सकती है। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा हवाई अड्डे, बंदरगाहों तथा रेलवे स्टेशनों पर विशेष स्वास्थ्य बल (Special Health Force) रखा जाता है। यदि किसी रोगी में रोग के लक्षण पाए जाते हैं, तक उसे दूर रखकर इलाज करवा सकती है तथा उक्त राज्य से राज्यों को सतर्क रहने के लिए तथा उक्त राज्य की सहायता करने के लिए अन्य राज्यों को भी निर्देश दे सकती है।
अधिनियम की धारा (3) में यह स्पष्ट बताया गया है जो इस अधिनियम की अवहेलना करेगा उसके ऊपर भारतीय दंड सहिता की धारा (188) के तहत दण्डनीय अपराध माना जायेगा। और भारतीय दंड सहिता (Indian Penal Code) की धारा 188 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति सरकार के नियमों/अधिसूचना का उल्लंघन करता है तो उसे कम-से-कम 1 महीने और अधिकतम 6 महीने कैद और 1000 रुपए का जुर्माना हो सकता है।
अधिनियम की धारा-4 सरकार, उसके कर्मचारियों और उसके अधिकारियों को ‘सद्भाव में’ किये गए किसी भी कार्य के लिये सुरक्षा प्रदान करता है।