Health Education
स्वास्थ्य शिक्षा
स्वस्वास्थ्य शिक्षा की प्राथमिकताएं
Priorities of Health Education
स्वास्थ्य शिक्षा देने के लिए देश की जनसंख्या को विभिन्न आयु समूहों व लिंग में बांटा जाता है तथा उसी के अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा की प्राथमिकता तय की जाती है। यदि सभी आयु समूह को एक से स्वास्थ्य शिक्षा दी जाएगी तो इसके परिणाम कम प्रभावी रहेंगे। जैसे यदि एक किशोर/किशोरी को बच्चों के टीकाकरण जननी सुरक्षा आदि की स्वास्थ्य शिक्षा दी जाएगी तो वह इसमें रुचि नहीं लेगा/लेगी।
इसी प्रकार यदि किसी बुजुर्ग पुरुष को शराब न पीने स्त्रियों के मानसिक धर्म के समय की जाने वाले स्वास्थ्य सुरक्षा या छोटे बच्चों के पालन पोषण की जानकारी दी जाएगी तो वह भी इसमें रुचि नहीं लेगा।

स्वास्थ्य शिक्षा की प्राथमिकताएं
Health Education Approach स्वास्थ्य शिक्षा की पहुंच Methods of Providing Health Education स्वास्थ्य शिक्षा देने के तरीके read more
- गर्भवती महिलाओं के लिए स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education for Pregnant)
- स्कूल जाने से पूर्व की उम्र में स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education in Pre-School Age)
- स्कूल जाने की उम्र में स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education in School Going Age)
- किशोरों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education for Adolescents)
- व्यस्को के लिए स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education for Adults)
- माता पिता की भूमिका (Role of Parents)
- स्कूलों की भूमिका (Role of Schools)
- बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education for Older)
- रोगियों को स्वास्थ्य शिक्षा (Health Education for Patients)
अतः यह आवश्यक है कि प्रत्येक आयु समूह के लिए अलग-अलग स्वास्थ्य शिक्षा दी जाए विभिन्न समूह लिंग अनुसार स्वास्थ्य शिक्षा देने की विभिन्न विधियां निम्न है:-
गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य शिक्षा देने के लिए विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाएं में सरकारी संस्थाएं कार्यरत है। और यह संस्थाएं गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य की देखरेख के साथ-साथ उन्हें पोषण युक्त भोजन करने भारी-भरकम काम ना करने पर्याप्त आहार लेने वह समय अनुसार चिकित्सा सुविधाएं लेने की शिक्षा देते हैं। संस्थाएं गर्भवती महिलाओं को बताती है कि किस प्रकार धूम्रपान शराब कुपोषण स्वास्थ्य हानि आधी फोन पर व उनके होने वाले बच्चों पर होने कारण प्रभाव डालती हैं जिससे गर्भवती महिलाएं प्रेरित होकर अपना वह अपने होने वाले बच्चे का ध्यान रख सकें।
जब बच्चा 3-4 साल का हो जाता है तब उसके माता-पिता या अन्य परिजनों द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा दी जाती है। जैसे बच्चे को कुछ भी खाने से पहले हाथ डलवाना मुंह या नाक में उंगली देने की आदत को गलत बताकर उसे ना करने के लिए समझाना खांसते व छींकते समय मुंह पर रुमाल रख वाना तथा उसे बाजार की खराब खाद्य पदार्थ ना देकर घर के पौष्टिक भोजन खाने के लिए प्रेरित करना इसके साथ ही स्कूलों के अध्यापक भी छोटे बच्चों को चित्र द्वारा या खेल द्वारा स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
स्कूली उम्र में बच्चों को सूचित लेने पोषण युक्त भोजन करने शारीरिक क्रिया करने व्यक्तिगत स्वच्छता परखने मानसिक स्वच्छता रखने धूम्रपान व ड्रग्स से संबंधित खतरे व सेक्स से संबंधित स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान की जाती है। इसके लिए बच्चों की स्कूली पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य विषय को सम्मिलित किया जाता है जिससे बच्चा प्रारंभ से ही स्वास्थ्य के महत्व को समझने व अपने स्वास्थ्य को ठीक कर रख सकें। विभिन्न प्रोत्साहन कार्यक्रमों विचारों व भाषाओं के द्वारा भी बच्चों को स्वास्थ्य शिक्षा दी जाती है।
विभिन्न रचनात्मक पुस्तकों व खेल द्वारा भी स्कूली बच्चों को स्वास्थ्य शिक्षा दी जाती है। आधुनिक समय में तो सभी स्कूलों के बच्चों के लिए योग व खेलकूद को अनिवार्य कर दिया गया है, जिससे बच्चा शारीरिक मेहनत करके अपने स्वास्थ्य को अच्छा रख सकें।
किशोर अवस्था में स्वास्थ्य शिक्षा देते समय विशेष नीतियों या क्रियाओं की आवश्यकता होती है। किशोर अवस्था में स्वास्थ्य शिक्षा में ना केवल होने स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा दी जाती है बल्कि किशोर/किशोरी के व्यवहार आचरण मानसिक व्यवस्था तनाव रोजगार आदि से संबंधित शिक्षा भी दी जाती है। किशोर/ किशोरियों को स्वास्थ्य शिक्षा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2000 लागू की है। इसके अंतर्गत किशोर/ किशोरी को ना केवल पर्याप्त पोषण युक्त आहार लेने के लिए प्रेरित किया जाता है, बल्कि उनके मद्यपान धूम्रपान की लत के परिणामों से परिचित करा कर उन्हें उनके प्रयोग से बचने की सलाह दी जाती है तथा किशोर/ किशोरी को असुरक्षित यौन संबंध से घातक परिणाम तथा इनसे होने वाले रोगों के बारे में बताया जाता है। लड़कियों को अवांछनीय घर की जानकारी दी जाती है जिससे किशोर व लड़के लड़की असुरक्षित यौन संबंध से बच सकें साथ ही साथ किशोर/ किशोरी को उनके रोजगार के संबंध में उनकी शिक्षा के संबंध में भी सलाह दी जाती है, जिससे उनका तनाव कम हो और वह मानसिक रूप से स्वस्थ बनें।
व्यस्क मानसिक रूप से परिपक्व होते हैं। किंतु गलत जीवनशैली पर दूषित वातावरण काम का दबाव व तनाव उनके स्वास्थ्य को बिगाड़ देता है। अतः व्यस्को को ऐसे स्वास्थ्य शिक्षा दी जाती है जिसके द्वारा उनके स्वास्थ्य जीवन शैली के महत्व को बताया जाता है। वातावरण को प्रदूषित होने के परिणामों को समझाया जाता है तथा अत्यधिक दबाव व तनाव के चलते उनके स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराया जाता है जिससे व्यस्क अपने खान-पान को सुधारें, नियमित व्यायाम करें, काम के घंटे निश्चित करें तथा अपने आराम के लिए समय निकालें व डॉक्टर से नियमित चेकअप कराएं जिससे उनका स्वास्थ्य अच्छा रहे एवं वह लंबा जीवन जी सकें।
कहा जाता है कि बच्चे की प्रथम पाठशाला उसके माता-पिता होते हैं। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देने में माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं। अतः बच्चों को स्वास्थ्य शिक्षा देने में भी माता-पिता प्राथमिक भूमिका निभाते हैं। अपने बच्चों में स्वच्छता की आदत डालना, उन्हें नियमित स्नान करवाना, उनके नाखून काटना, उन्हें पोषण युक्त आहार देना, स्वच्छ जल पिलाना आदि स्वास्थ्य शिक्षा माता-पिता के द्वारा दी जाती है। इसके साथ ही माता-पिता का यह भी कर्तव्य है कि बच्चों के सामने अपने व्यवहार को संयमित रखें ना तो बच्चों के सामने गाली गलौज करें और ना ही मद्यपान और धूम्रपान करें। माता-पिता की गलत आदतें बच्चों के बाल मन पर गहरा असर करती है तथा बच्चे गलत आदतों के शिकार हो सकते हैं।
स्वास्थ्य शिक्षा में स्कूलों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। स्कूलों में सिखाई गई हर बात को बच्चा गहराई से लेता है वह उस पर अमल करता है। यदि स्कूलों में यह शिक्षा दी जाती है कि बच्चा नियमित ब्रश करके स्नान करके व स्वच्छ कपड़े पहन कर आए तथा लंच बॉक्स में घर का बना ताजा भोजन लेकर आए तो बच्चा ऐसी आदतों को जरूर अपना आएगा जिससे उसका स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
स्वास्थ्य शिक्षा में स्कूलों के महत्व को ध्यान में रखते हुए सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में स्वास्थ्य शिक्षा को सम्मिलित किया है तथा प्रत्येक स्कूल में बच्चों के लिए खेलकूद व योग को अनिवार्य बना दिया है।
उम्र के साथ-साथ व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक क्षमता सीन होने लगती है जिससे उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है। अतः बुजुर्गों को बढ़ती उम्र के साथ अपनी दिनचर्या बदलने हल्का भोजन करने टहलने वह डॉक्टर से अपने नियमित जांच करवाने की शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही बुजुर्गों के परिवार जनों को उनका ख्याल रखने वह उन्हें सम्मान देने की शिक्षा दी जाती है।
रोगियों के संबंधित रोग के कारण व उपचार की जानकारी दी जाती है तथा रोगियों को उनके खानपान तथा रोक के समय बरतने वाली सावधानियों की शिक्षा दी जाती है।