Labour Welfare Legislation
श्रमिक कल्याण अधिनियम
Factory Act 1948
कारखाना अधिनियम 1948
- कारखाना अधिनियम 1948 के विभिन्न प्रावधान
हानिकारक प्रक्रियाएं, प्रशासन, क्रियान्वयन एवं लागू किया जाना अपराध के लिए दंड का प्रावधान
- हानिकारक प्रक्रियाएं
- मशीनों के पुर्जे कवर्ड होने चाहिए जिसजे चलते वक्त किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने से बच जाए।
- कारखानों में आग लगने पर बचाव के लिए समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- कारखानों में जहां वेल्डिंग तथा पत्थरों को खोदने व काटने का काम होता हो वहां मजदूरों की आँखों की सुरक्षार्थ एनेक (चश्में) की व्यवस्था होनी चहिए।
- आग लगने पर बचाव के लिए सूचना देने वाले अलार्म आदि की व्यवस्था होनी चहिए।
- भवनों तथा मशीनों का रख-रखाव ठीक प्रकार से होना चाहिए।
- आग भुझाने के यंत्र उचित स्थान लगे होने चाहिए जिससे आग लगने पर तुरंत इन्हे उपयोग में लिया जा सके।
- मशीनों को ऑपरेट करने के लिए प्रशिक्षित एवं दक्ष कारीगरों से ही काम लिया जाना चाहिए कदापि बच्चों एवं महिलाओं को ऐसे कार्य में नहीं लगाना चाहिए।
- प्रशासन
- क्रियान्वयन एवं लागू किया जाना
- अपराध के लिए दंड का प्रावधान
- पहली बार उल्लंघन करने पर
- दूसरी बार उल्लंघन करने पर
- तीसरी बार उल्लंघन करने पर
- निरीक्षक के कार्य में बाधा उत्पन्न करने पर

इस अधिनियम को भारत सरकार ने बनाया है, लेकिन इस अधिनियम के अनुसार कार्यन्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को सौंप दी है। राज्य सरकार द्वारा कानूनों को लागू करने के लिए कारखाना निरीक्षक की भर्ती की जाती है और ये निरीक्षक राज्य सरकार के प्रति उत्तरदायी होते है। निरीक्षकों को अधिकार सम्पन्न बनाया गया है। निरीक्षक सीधे ही बिना फैक्टरी मालिक की अनुमति के काम करने वाले मजदूरों से उनके कार्यस्थल पर मिल सकते है और उनके स्वास्थ्य,सुरक्षा तथा कल्याण (Health, Safety and Welfare) की जानकारी ले सकते है। इसके अलावा मिल मालिकों से मजदूरों को दी जाने वाली सुख-सुविधाओं की जानकारी के साक्ष्य/ दस्तावेज मांग सकते है।
कारखाना अधिनियम 1948, अप्रैल 1949 में पुरे देश में लागू किया गया। इस अधिनियम में 1970 में संशोधन किया गया जिसके अनुसार ठेकेदारों द्वारा अपने काम के लिए रखे गए कर्मचारियों को भी इस अधिनियम (Act) के अंतरगर्त लाया गया | मजदूरों को उनके श्रम के अनुपात में कम पगार दी जाती है। उनसे जोखिम भरा एवं मनचाहा कार्य लिया जाता है। इस प्रकार कामगारों का शोषण सभी प्रकार से आर्थिक, शारीरिक एवं मानसिक (Economic, Physical and Mental) होता है। महिलाओं, बच्चों से भी काम पूरा लिया जाता है तथा मजदूरी पुरुषों से कम दी जाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए और मजदूरों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए कारखाना अधिनियम संसद द्वारा बनाकर पुरे देश में लागु किया गया है।
कारखाना अधिनियम के अनुसार कारखाने के मालिक का यह दायित्व है की वह समस्त व्यवस्थाओं का पूरी ईमानदारी से पालन करें। कारखाना निरीक्षक समय समय पर फैक्टरी की जाँच करें उल्लंधन करने वाले को नियमानुसार दंडित करवाएं |दण्डित निम्नानुसार किया जा सकता है:-
यदि कोई भी कारखाने का मालिक अधिनियम का पहली बार उल्लंघन करता है तो कारखाने के मालिक या प्रबंधक को तीन माह की सजा या दो हजार रुपए आर्थिक दण्ड अथवा दोनों सजाए दी जा सकती है।
एक बार सजा पाने के बाद भी अगर फैक्टरी का मालिक या प्रबंधक अधिनियम का दूसरी बार उल्लंघन करता है तो सजा दुगुनी हो जाती है अर्थातृ 6 माह की सजा या 5000 रुपए आर्थिक दण्ड या दोनों हो सकती है।
यह उल्लंघन बार-बार की श्रेणी में आता है ! यदि दो बार दण्डित होने के पश्चात भी उल्लंघन होता है तो 6 माह का कारावास और प्रतिदिन 150 रूपए जुर्माना अतिरिक्त किया जाता है।
यदि कोई मिल मलिक निरीक्षक द्वारा मांगे गए दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं करवाता है या मजदूरों को वास्तिवक सूचना देने से रोकता है तो उसे तीन माह की सजा या 5000 रुपए जुर्माना किया जा सकता है।
- यदि कोई मजदूर अधिनयम की धाराओं का उल्लंघन करता है या बाधा पहुंचता है तो उस पर 20 रुपए जुर्माना किया जाता है।
- यदि कोई मजदूर किसी अन्य के प्रमाण पत्रों को अपने नाम से उपयोग में लाता है तो उसे एक माह की सजा व 50 रुपए जुर्माना या दोनों सजा की जा सकती है।
- यदि कोई अवयस्क ओवर टाइम करता है तो उस पर 50 रुपए आर्थिक दंड करने का प्रावधान है, लेकिन यदि कोई अवयस्क अवेच्छा से काम करता है तो किसी को भी दण्डित नहीं किया जा सकता।