Sanitation Measures in Fairs, Festivals and Natural Calamities
मेले, त्यौहारों व प्राकृतिक आपदाओं में स्वच्छता के उपाय
लोगों की भीड़ से संबंधित स्वच्छता समस्याएं
Sanitary Problems Associated With Human Gathering
मेले व त्यौहारों के दौरान जब लोग एकत्रित होते है, तब लोगों की भीड़ अनेक समस्याएं उत्पन्न करती है। कुछ असामाजिक तत्व इन समस्याओं को अधिक गंभीर व अनियंत्रित बना देते हैं, तो कभी-कभी प्राकृतिक आपदाएं या अनियमित व्यवस्था भी अनेक समस्याओं को जन्म देती है। मेले व त्यौहारों या अन्य उतस्वों के दौरान एकत्रित जनसमूह से होने वाली कुछ समस्यांओ का विवरण निम्न प्रकार है:-

लोगों की भीड़ से संबंधित स्वच्छता समस्याएं
Sanitary Management During Fairs and Festivals मेले व त्यौहारों के दौरान स्वच्छ्ता प्रबंधन read more
- महामारी का डर (Fear of Epidemic)
मेले के दौरान यदि कुछ संक्रामक व्यक्ति अन्य लोगों के संपर्क में आते हैं तो उस संक्रामक रोग से अन्य व्यक्ति भी ग्रसित हो जाते हैं। धीरे-धीरे संक्रामक रोग फैलकर महामारी का रूप ले लेता हैं। जैसे:- भारत के 1867 के हरिद्वार मेले में हैजा व चेचक रोग ने महामारी का रूप धारण कर लिया। यह मेला हरिद्वार में 12 साल बाद लगता है तथा करीब 20 से 30 लाख श्रद्धालु इस मेले में आते हैं।
यह मेला 10-12 दिन चलता है लेकिन 1867 में 3 अप्रैल को प्रारंभ हुआ। यह मेला केवल 6 दिन चला, क्योंकि मेले के दौरान हैजा रोग ने विकराल रूप धारण कर लिया। इसमें लाखों लोगों की मृत्यु हो गई। इतना ही नहीं हैजा रोग ने भारत के हर क्षेत्र को प्रभावित तो किया ही साथ ही कश्मीर, काबुल से होता हुआ रूस तक पहुंच गया तथा 2,42,000 लोगों की मृत्यु हो गई।
12 साल बाद फिर हरिद्वार में मेला लगा। किन्तु 12 साल बाद भी हैजा रोग के लक्षण व डर उस मेले में अनुभव हुए तथा तमाम इंतजामों के बाद भी करीब 34,000 लोग हैजा रोग से मारे गए।
- अधिक गुर्घटनाएं (More Accidents)
- अतिरिक्त पुलिस बल (Extra Police Force)
- अतिरिक्त खर्चा (Additional Expenses)
- चिकित्सा सुविधाओं का गड़बड़ाना (Deprivation of Health Facilities)
- असामाजिक तत्वों द्वारा उपद्रव (Nuisance by Anti-Social Elements)
- स्वास्थ्य के साथ खिलवाड (Messing With Health)
मेले के दौरान लाखों की भीड़ एकत्रित होती है। लोगों के आवागमन के लिए यातायात साधनों की संख्या बढ़ाई जाती है। किन्तु यह संख्या भीड़ को देखते हुए कम होती है। लोग अपनी जान जोखिम में डालकर यात्रा करते हैं, जिससे अधिक दुर्घटनाओं की संभावनाएं रहती हैं। जैसे-2007 के रामदेवरा मेले के दौरान ट्रैन की छत पर यात्रा करने वाले कई यात्री हादसे का शिकार हो मौत के मुंह में चले गए।
मेले के दौरान भगदड़, लड़ाई, झगड़ा, छीना-झपटी तथा चोरी होने की संभावना रहती है। इन स्थितियों से बचने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल की व्यवस्था करनी पड़ती है। कस्बे, जिले व राज्य की शांति व्यवस्था संभालने वाली पुलिस को मेले में ज्यादा लगाया जाता है, जिससे आबादी वाले क्षेत्र की शांति व्यवस्था पर फर्क पड़ता है व आबादी क्षेत्र में असामाजिक तत्व सक्रिय हो उठते हैं।
मेले के दौरान पीने के पानी, शौचालय, स्नानघर, लंगर,टैंट, स्टेट आदि की व्यवस्था के लिए रुपयों की आवश्यकता होती है, जिससे नागरिकों व स्थानीय सरकार पर मेले के खर्चें का अतिरिक्त भार पड़ता है।
मेले व उत्सवों के दौरान रोग, दुर्घटना आदि की स्थिति से बचने के लिए बड़ी मात्रा में चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था की जाती है। सरकारी अस्पताल के डॉक्टर,नर्स व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की ड्यूटी लगने के कारण अस्पतालों की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं गड़बड़ा जाती है।
प्राय: यह देखने में आता है कि लोगों की भीड़ या मेले या त्यौहार के दौरान कुछ शरारती व असामाजिक तत्व लूटपाट, छेड़छाड़, जेब काटना, धन-दौलत लूटना आदि कार्यों के लिए सक्रिय हो जाते है। कुछ असामाजिक तत्व साम्प्रदायिकता फैलाकर मेले के दौरान दंगा-फसाद करवाते हैं, तो कुछ अफवाह फैलाकर लोगों में भगदड़ मचा देते हैं, जिससे कई मानवीय जानें चली जाती हैं व लाखों की धन हानि होती है।
लोगों की भीड़ के दौरान खाने-पीने की वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है, जिससे लालची प्रवृति के दुकानदार घटिया स्तर की खाद्य सामग्री बेचकर मुनाफा कमाने का प्रयत्न करते हैं। लोगों को मजबूरीवश घटिया स्तर की खाद्य सामग्री खान पड़ता है, जो उनके स्वास्थ्य पर लम्बे-समय तक नकारात्मक प्रभाव डालती है। लोगों के एकत्रित होने पर सभी लोगों के लिए लाइट, पानी,आवास, भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसके लिए अलग-अलग विभागों को अतिरिक्त कार्यभार दिया जाता है। समस्या तब अधिक कठिन हो जाती है, जब एकत्रित भीड़ पर प्राकृतिक आपदा अपना खर बरपाती है। जैसे-भारत की उत्तराखंड त्रासदी। सीमित व्यवस्था में प्राकृतिक आपदा की असीमित अव्यवस्था को निंयत्रित करना मुश्किल ही नहीं असंभव सा हो जाता है। लाखों की जन-धन हानि होती है व संबंधित देश सालों तक इस त्रासदी से उबर नहीं पाता।